बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्र बीए सेमेस्टर-3 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
बीए सेमेस्टर-3 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्र
प्रश्न- गांधार कला के विभिन्न पक्षों की विवेचना कीजिए।
अथवा
गांधार कला की विषय-वस्तु।
अथवा
कुषणकालीन गान्धार कला की विशेषताओं का विवरण दीजिए।
उत्तर -
यूनानी कला के प्रभाव से देश के पश्चिमोत्तर भागों में, कुषाणकाल में एक स्वतन्त्र एवं नवीन कला शैली का विकास हुआ जिसे “गांधार शैली” के नाम से जाना जाता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि सर्वप्रथम इसी शैली में बुद्ध मूर्तियाँ बनी किन्तु इस सम्बन्ध में कोई ठोस प्रमाण हमें प्राप्त नहीं होता। बी0एस0 अग्रवाल ने अत्यन्त तार्किक ढंग से यह सिद्ध कर दिया है कि सर्वप्रथम बुद्ध मूर्ति का आविष्कार मथुरा के शिल्पियों द्वारा किया गया था। चूँकि मथुरा के शिल्पी बहुत पहले से ही यक्ष तथा नाग की सुन्दर सुन्दर मूर्तियाँ बना रहे थे, अतः कोई कारण नहीं कि बुद्ध मूर्तियों की रचना का प्रथम श्रेय उन्हें न दिया जाय। गांधार शैली में भारतीय विषयों को यूनानी ढंग से व्यक्त किया गया है। इस पर रोमन कला का भी प्रभाव स्पष्ट है। इसका विषय केवल बौद्ध है और इसी कारण कभी-कभी इस कला को यूनानी बौद्ध, इण्डो-ग्रीक अथवा ग्रीको-रोमन कला भी कहा जाता है। इस शैली की मूर्तियाँ अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान के अनेक प्राचीन स्थलों से प्राप्त हुई हैं। इसका प्रमुख केन्द्र गांधार ही था और इसी कारण यह 'गांधार कला' के नाम से ही ज्यादा लोकप्रिय है।
बौद्ध मूर्तियाँ - गांधार कला के अन्तर्गत बुद्ध एवं बोधिसत्वों की बहुसंख्यक मूर्तियों का निर्माण हुआ, ब्राह्मण तथा जैन धर्मों से सम्बन्धित मूर्तियाँ इस कला में प्रायः नहीं मिलती। मूर्तियाँ काले स्लेटी पाषाण, चूने तथा पक्की मिट्टी से बनी है ये ध्यान, पद्मासन, धर्मचक्र प्रवर्तन, वरद तथा अभय आदि मुद्राओं में हैं। आरम्भिक बुद्ध मूर्ति पेशावर के पास शाहजी की ढेरी से प्राप्त कनिष्क चैत्य की आस्थि मंजूषा पर बनी है। विरमान की अस्थिमंजूषा पर भी बुद्ध को मानव रूप में दिखाया गया है। शाहजी की ढेरी से प्राप्त मंजूषा के ढक्कन पर बुद्ध पद्मासन में विराजमान हैं। उनके दाएँ तथा बाएँ क्रमशः ब्रह्मा तथा इन्द्र की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। बुद्ध के कन्धों पर संघाटी तथा ढक्कन के किनारे उड़ते हुए हँसों की पंक्ति हैं। मंजूषा के किनारे कन्धों पर माला उठाया हुये यक्षों की आकृतियाँ हैं। उत्कीर्ण लेख में कनिष्क तथा अगिशल नामक वास्तुकार का उल्लेख मिलता है। सहारी बहलोल, तख्तेवाही आदि से मिली स्थानक मुद्रा की मूर्तियाँ अधिक मांसल तथा भारी-भरकम काया की हैं। बर्लिन संग्रहालय में रखी हुई ध्यान मुद्रा में निर्मित मूर्ति में शान्ति, करुणा एवं आभा का प्रदर्शन मिलता है। इसी प्रकार लाहौर संग्रहालय में रखी गयी एक मूर्ति संरचना एवं शिल्प की दृष्टि से उल्लेखनीय है। इन मूर्तियों के साथ ही साथ बुद्ध के जीवन तथा पूर्व जन्मों से सम्बन्धित विविध घटनाओं के दृश्यों जैसे माया का स्वप्न, उनका गर्भ धारण करना, माया का कपिल वस्तु से लुम्बिनी उद्यान में जाना, बुद्ध का जन्म, लुम्बिनी से कपिलवस्तु वापस लौटना, अस्ति द्वारा कुण्डली फल बताना, सिद्धार्थ का बोधिसत्व रूप, पाठशाला में बोधिसत्व की शिक्षा, लिपि विज्ञान में सिद्धार्थ की परीक्षा, उनकी मल्ल तथा तीरन्दाजी में परीक्षा, यशोधरा से विवाह, देवताओं द्वारा संसार त्याग हेतु सिद्धार्थ से प्रार्थना, सिद्धार्थ का कपिलवस्तु छोड़ना कन्थक से विदा लेना, बुद्ध दर्शन हेतु मगधराज बिम्बिसार का जाना, संबोधि प्राप्ति के पहले की विविध स्थितियाँ, देवताओं द्वारा बुद्ध के धर्मोपदेश के लिए प्रार्थना करना, धर्मचक्रप्रवर्तन, बुद्ध का कपिलवस्तु आगमन तथा राहुल को भिक्षु की दीक्षा देना, नन्द सुन्दरी कथानक, बुद्ध पर देवदत्त के प्रहार, श्रावस्ती में अनाथपिण्डक द्वारा विहार का दान नलगिरि हाथी को वश में करना, अंगुलिमाल का आत्मसमर्पण, किसी स्त्री के मृत शिशु की घटना, आनन्द को सांत्वना देना, इन्द्र और पञ्चशिख गंधर्व द्वारा बुद्ध का दर्शन, आम्रपाली द्वारा बुद्ध को आम्रवाटिका प्रदान करना, कुशीनगर में महापरिनिर्वाण, धातुओं का बंटवारा तथा धातु पात्र का हाथी की पीठ पर ले जाया जाना, धातु पूजा, त्रिरत्न पूजा सहित 61 दृश्यों का अंकन इस शैली में किया गया है। इससे सूचित होता है कि शिल्पी ने बुद्ध के लौकिक तथा पारलौकिक जीवन से सम्बन्धित प्रायः सभी छोटी-बड़ी घटनाओं को अत्यन्त बारीकी के साथ चित्रित किया गया है। इतना विशद् चित्रांकन कहीं अत्यन्त्र नहीं मिलता। कुछ दृश्य अत्यन्त कारुणिक एवं प्रभावोत्पादक हैं। तपस्यारत बुद्ध का एक दृश्य, जिसमें उपवास के कारण उनका शरीर अत्यन्त क्षीण हो गया है, गांधार कला के सर्वोत्तम नमूनों में से है। कलाकार को उपवासरत तपस्वी के शरीर का यथार्थ चित्रण करने में अद्भुत सफलता मिली है। नसों तथा पसलियों को अत्यन्त कुशलतापूर्वक उभारा गया है, पेट पर अंदर धँसा हुआ है किन्तु मुखमण्डल की शान्ति, दृढ़ इच्छाशक्ति को प्रकट करती है। इसी तरह बुद्ध से विदा लेते हुए उनके कन्थक नामक प्रिय अश्व का दृश्य काफी प्रभावोत्पादक है।
बोधिसत्व मूर्तियों में सबसे अधिक मैत्रेय की हैं। कुछ अवलोकितेश्वर तथा पद्मपाणि की मूर्तियाँ भी प्राप्त होती हैं। इन्हें हाथ में कमल, पुस्तक तथा अमृतकलश लिए हुए दिखाया गया है। उनका स्वरूप राजसी है। कई मूर्तियों में दाढ़ी-मूढ़, धोती, संघाटी आदि दिखाया गया है। गजकारी की कई बुद्ध और बोधिसत्व मूर्तियाँ भी मिलती हैं। जो कलात्मक दृष्टि से अच्छी हैं। इसी का रूप मृण्मय मूर्तियों में दिखायी देता है जो सिंध तथा मीरपुर खास से मिली हैं। गांधार शैली की अधिकांश मूर्तियाँ लाहौर तथा पेशावर के संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। इन मूर्तियों की कुछ अपनी अलग विशेषताएँ हैं जिनके आधार पर वे स्पष्टतः भारतीय कला से अलग की जा सकती है। इनमें मानव शरीर के यथार्थ चित्रण की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। मांस पेशियों, मूंछों, लहरदार बालों का अत्यन्त सूक्ष्म ढंग से प्रदर्शन हुआ है। बुद्ध की वेश-भूषा यूनानी है, उनके पैरों में जूते दिखाये गये हैं, प्रभामण्डल सादा तथा अलंकरणरहित है और शरीर से अत्यन्त सटे अंग-प्रत्यंग दिखाने वाले झीने वस्त्रों का अंकन हुआ है। उनके सिर पर घुंघराले बाल दिखाए गये हैं। इन सबका फल यह है कि बुद्ध की मूर्तियाँ यूनानी देवता अपोलो की नकल प्रतीत होती है। महात्मा बुद्ध की मूर्तियाँ अपने सूक्ष्म विस्तार के बावजूद मशीन से बनायी गयी प्रतीत होती हैं। इनमें वह भावात्मक स्नेह नहीं है, जो भरहुत, साँची, बोधगया अथवा अमरावती की मूर्तियों में दिखाई देता है। इसी कारण यह कहा जा सकता है कि "इस शैली के कलाकार के पास यूनानी का हाथ परन्तु भारतीय का हृदय था। "
बुद्ध एवं बोधिसत्व की मूर्ति के अतिरिक्त इस शैली में अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों का भी निर्माण किया गया। इसमें हारिति रोमा तथा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। हारिति को मातृ देवी के रूप में पूजा जाता था वह सौभाग्य तथा धन-धान्य की अधिष्ठाली थी। अग्रवाल महोदय ने लाहौर संग्रहालय में सुरक्षित रोमा देवी की मूर्ति को गांधार कला की सर्वोत्तम मूर्तियों में स्थान दिया है। इसे सिर पर टोप धारण किए हुए तथा हाथ में बर्छा लिए हुए दिखाया गया है। उसके मुखमण्डल से तेज निकल रहा है। हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों में पंचिक कुबेर, हारीति, इन्द्र, ब्रह्मा, सूर्य आदि का चित्रण इस कला में मिलता है। सहरी बहलोल से प्राप्त हारीति तथा कुबेर की एक युगल मूर्ति उत्कृष्ट कलाकृति है। यह पेशावर संग्रहालय में सुरक्षित है। शाहजी की ढेरी से प्राप्त कनिष्क मंजूषा के ऊपर बुद्ध के साथ इन्द्र तथा ब्रह्मा का चित्र एवं गांधार से प्राप्त काले स्लेटी पत्थर की उत्कीर्ण सूर्य प्रतिमा जिसमें सूर्य को चार अश्वों के रथ पर आसीन दिखाया गया है, भी काफी सुन्दर है। उसके दोनों ओर अनुचरों का अंकन है।
कपिशा से अनेक दन्तफलक मिले हैं जो कभी श्रृंगार पेटियों अथवा रत्नमंजूषाओं के अंग रहे होंगे, इन पर अनेक मुद्राओं एवं भंगिमाओं में सुन्दरियों का अंकन किया गया है। 1937-39 के मध्य फ्रांस के पुरातत्ववेत्ताओं ने खुदाई के दौरान इन्हें प्रकाशित किया था। इनमें शुक्र क्रीड़ा, हंस क्रीड़ा, नृत्य दृश्य, पानगोष्ठी, उड़ते हुए हंस, दर्पण निहारती आदि सुन्दरियों एवं प्रसाधिकाओं की आकृतियाँ अत्युत्कृष्ट हैं। कुछ फलक मथुरा शैली से मिलते-जुलते हैं। एक आकृति में बालक को गोद में लेकर स्तनपान कराती हुई नारी प्रदर्शित की गयी है। ये गांधार कला शैली की मोहक आकृतियाँ हैं जिनमें तत्कालीन समाज के कुलीन तथा सामान्य वर्ग में प्रचलित वेशभूषा की जानकारी मिलती है। इन विविध दृश्यों पर भारतीय तथा रोमन कला, दोनों का प्रभाव परिलक्षित होता है।
वासुदेव शरण अग्रवाल ने प्रतिमाशास्त्र की दृष्टि से गांधार कला की निम्नलिखित विशेषताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है- बुद्ध के जीवन की घटनाएँ और बोधिसत्व की मूर्तियाँ, जातक कथाएँ, यूनानी देव-देवी और गाथाओं के दृश्य, भारतीय देवता और देवियाँ, वास्तु- सम्बन्धी विदेशी विन्यास, भारतीय अलंकरण एवं यूनानी, ईरानी और भारतीय अभिप्राय एवं अलंकरण।
गान्धार शैली में निर्मित बुद्ध तथा बोधिसत्व मूर्तियाँ ही विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन मूर्तियों में आध्यात्मिकता तथा भावुकता न होकर बौद्धिक एवं शारीरिक सौन्दर्य की ही प्रधानता दिखायी देती है। इनके मुंह में बनायी गई मूंछे तथा पैरों में दिखाए गए चप्पल से किसी प्रकार का भाव अथवा धार्मिक भावना प्रकट नहीं होती। ये अत्यन्त घटिया कोटि की है तथा भारतीय कलाकार ऐसी मूर्ति बनाने में कभी गर्व नहीं करते। अपने यूनानी स्वरूप के कारण यह भारतीय कला की मुख्य धारा से पृथक् रही तथा इसका क्षेत्र पश्चिमोत्तर प्रदेश तक ही सीमित रहा। मार्शल महोदय ने सही ही लिखा है कि यूनानी तथा रोमन कलाओं ने गान्धार शैली को जन्म देने के अतिरिक्त भारतीय कला के ऊपर कभी भी वैसा प्रभाव उत्पन्न नहीं किया जैसा कि इटली अथवा पश्चिमी एशिया की कला के ऊपर। यूनान तथा भारत के दृष्टिकोण मूलतः भिन्न थे। यूनानी, मनुष्य कें सौन्दर्य एवं बुद्धि को ही सर्वेसर्वा समझते थे। भारतीय दृष्टि में लौकिकता के स्थान पर अमरत्व तथा समीप के स्थान पर असीम की प्रधानता थी। यूनानी विचार नैतिक एवं बुद्धि प्रधान था जबकि भारतीय विचार आध्यात्मिक एवं भावना प्रधान था।
इस प्रकार गांधार कला अपने विदेशी प्रभाव के फलस्वरूप भारतीय कला का सौन्दर्य विहीनरूप ही प्रतीत होती है।
|
- प्रश्न- दक्षिण भारतीय कांस्य मूर्तिकला के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- कांस्य कला (Bronze Art) के विषय में आप क्या जानते हैं? बताइये।
- प्रश्न- कांस्य मूर्तिकला के विषय में बताइये। इसका उपयोग मूर्तियों एवं अन्य पात्रों में किस प्रकार किया गया है?
- प्रश्न- कांस्य की भौगोलिक विभाजन के आधार पर क्या विशेषतायें हैं?
- प्रश्न- पूर्व मौर्यकालीन कला अवशेष के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- भारतीय मूर्तिशिल्प की पूर्व पीठिका बताइये?
- प्रश्न- शुंग काल के विषय में बताइये।
- प्रश्न- शुंग-सातवाहन काल क्यों प्रसिद्ध है? इसके अन्तर्गत साँची का स्तूप के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- शुंगकालीन मूर्तिकला का प्रमुख केन्द्र भरहुत के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अमरावती स्तूप के विषय में आप क्या जानते हैं? उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- इक्ष्वाकु युगीन कला के अन्तर्गत नागार्जुन कोंडा का स्तूप के विषय में बताइए।
- प्रश्न- कुषाण काल में कलागत शैली पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- कुषाण मूर्तिकला का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कुषाण कालीन सूर्य प्रतिमा पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- गान्धार शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- मथुरा शैली या स्थापत्य कला किसे कहते हैं?
- प्रश्न- गांधार कला के विभिन्न पक्षों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मथुरा कला शैली पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गांधार कला एवं मथुरा कला शैली की विभिन्नताओं पर एक विस्तृत लेख लिखिये।
- प्रश्न- मथुरा कला शैली की विषय वस्तु पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- मथुरा कला शैली की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मथुरा कला शैली में निर्मित शिव मूर्तियों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- गांधार कला पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- गांधार कला शैली के मुख्य लक्षण बताइये।
- प्रश्न- गांधार कला शैली के वर्ण विषय पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- गुप्त काल का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- "गुप्तकालीन कला को भारत का स्वर्ण युग कहा गया है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- अजन्ता की खोज कब और किस प्रकार हुई? इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करिये।
- प्रश्न- भारतीय कला में मुद्राओं का क्या महत्व है?
- प्रश्न- भारतीय कला में चित्रित बुद्ध का रूप एवं बौद्ध मत के विषय में अपने विचार दीजिए।
- प्रश्न- मध्यकालीन, सी. 600 विषय पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- यक्ष और यक्षणी प्रतिमाओं के विषय में आप क्या जानते हैं? बताइये।